भील प्रदेश की पुरानी मांग एक बार फिर सुर्खियों में:
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के ऐतिहासिक मानगढ़ धाम में गुरुवार को एक बार फिर “भील प्रदेश” की मांग को लेकर आदिवासी समुदाय ने हुंकार भरी। राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से आए हजारों आदिवासियों ने एकजुट होकर एक अलग भील प्रदेश के गठन की मांग को लेकर प्रदर्शन किया।
मानगढ़ धाम आदिवासियो का तीर्थ स्थल है। यहां भील प्रदेश युक्ती मोर्चा ओर आदिवासी परिवार की ओर से सम्मेलन आयोजित किया गया। भील समाज की ओर से राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात ओर महाराष्ट्र के 45 जिलों को मिलाकर भील प्रदेश बनाने की मांग वर्षो से की जा रही है।
क्या है भील प्रदेश की मांग?
“भील प्रदेश” की मांग कोई नई नहीं है। यह दशकों पुरानी वह मांग है जो भील जनजाति के अधिकारों, पहचान और सांस्कृतिक संरक्षण को लेकर उठती रही है।
मूल रूप से यह मांग आदिवासी बहुल क्षेत्रों को मिलाकर एक स्वतंत्र राज्य बनाने की है, जिसमें शामिल हों:
दक्षिणी राजस्थान (बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़)
गुजरात के आदिवासी क्षेत्र
महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की आदिवासी पट्टी
भील प्रदेश की मांग का इतिहास 108 साल पुराना है। 1913 मे मानगढ़ नरसंहार के बाद भील समाज सुधारक गोविंद गुरु ने इसकी शुरुआत की थी। 17 नवम्बर 1913 को मानगढ़ की पहाड़ियों मे ब्रिटिश सेना ने सैकड़ो भील आदिवासियों की हत्या कर दी थी। इस घटना को आदिवासी जलियावाला के रूप मे भी जाना जाता हे। तब से भील समुदाय अनुसूचित जनजाति के विशेषाधिकारों के साथ एक अलग राज्य बनाने की करता आ रहा है।
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सम्मेलन में क्या हुआ?
भील आदिवासी सम्मेलन (भील प्रदेश संदेश यात्रा) के बैनर तले आयोजित इस कार्यक्रम में जनप्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, युवाओं और महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में भाग लिया। सभी की एक ही आवाज़ थी:
“अगर जाति के नाम पर कोई राज्य नहीं बन सकता, तो फिर हिंदू राष्ट्र की बात क्यों?”
आदिवासी परिवार संस्था के संस्थापक मास्टर भंवर लाल परमार ने कहा- आदिवासियों की मांगे 70 सालों मे भी पुरी नही हुई। आदिवासी भारत का मूल मालिक है। आदिवासियों ने डरना छोड़ दिया है। भील प्रदेश के लिए आंदोलन चलता रहेगा।
मुख्य वक्ता और उनका संदेश:
आदिवासी नेता रोत ने कहा,
> “हमें आज़ादी के 75 साल बाद भी सम्मान, शिक्षा और संसाधनों में बराबरी नहीं मिली। भील प्रदेश बनाना अब सिर्फ मांग नहीं, अधिकार है।”
रोत बोले जो आदिवासी समुदाय का विरोधी हे वो विदेशी हे।
सांसद रोत बोले भील राजस्थान का गौरव है, भील नही होते तो आप मूँछे नही तानते
सांसद रोत ने शेयर किया था भील प्रदेश का मेप बांसवाड़ा डूंगरपुर सांसद राजकुमार रोत ने 15 जुलाई को सोशल मिडिया पर भील प्रदेश का नक्सा भी जारी किया था। रोत ने लोगो से अधिक से अधिक संख्या मे पहुंचने की अपील की थी।
सरकार की प्रतिक्रिया और आगे की राह:
फिलहाल राज्य या केंद्र सरकार की ओर से इस मांग पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन यह साफ है कि आदिवासी समुदाय अब संगठित होकर अपने हक के लिए गंभीरता से आवाज़ उठा रहा है।
यदि यह आंदोलन और तेज़ होता है, तो यह आने वाले समय में राजनीतिक दलों के लिए चुनौती बन सकता है, खासकर 2024 और आगे के चुनावों में।
आदिवासी चेतना का उठता हुआ स्वर:
भील प्रदेश की मांग अब केवल सीमित क्षेत्र की नहीं रही, यह एक सांस्कृतिक और अधिकारिक पहचान की लड़ाई बन चुकी है।
बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम से निकली यह आवाज़ आने वाले समय में राजनीतिक और सामाजिक बदलाव का संकेत बन सकती है।
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