राजसमंद: जन्माष्टमी के पावन पर्व पर जब नाथद्वारा में श्रीनाथजी की हवेली जगमग है और हर तरफ भजन-कीर्तन गूंज रहे हैं, तब कम ही भक्तों को यह पता है कि आज से दो सौ साल पहले श्रीनाथजी पांच साल तक नाथद्वारा में नहीं रहे थे। श्रीनाथ प्रभु की यात्रा का यह हिस्सा उनके भक्तों के अटूट विश्वास और भक्ति का प्रमाण है।श्रीनाथजी की 5 साल की वो यात्रा: जब मराठों से बचने के लिए उदयपुर के पास रुके थे प्रभु
औरंगजेब के दौर से शुरू हुई यात्रा:
मीरा कन्या महाविद्यालय, उदयपुर के प्रोफेसर और इतिहासकार डॉ. चंद्रशेखर शर्मा बताते हैं कि कहानी की शुरुआत मुगल बादशाह औरंगजेब के दौर से होती है। जब औरंगजेब का मूर्तिभंजन अभियान चल रहा था, तब मथुरा में ब्रज से श्रीनाथजी की प्रतिमा को सुरक्षा के लिए मेवाड़ लाया गया। कुछ समय बाद, मराठा सेनापति जसवंतराव होल्कर प्रतापगढ़ पहुंचे और उन्होंने एक चिट्ठी लिखकर धमकी दी कि वे श्रीनाथजी को लूटेंगे। उस समय नाथद्वारा के तिलकयात भीम सिंह थे।
मंदिर बनने से पहले हुआ हमला
मराठों के हमले की धमकी के कारण, मूर्ति की सुरक्षा के लिए घसेर (आज का घसियारिया) में एक नया मंदिर बनाने की तैयारियां शुरू कर दी गईं। लेकिन मंदिर बनने से पहले ही पहाड़ियों के बीच मराठा हमला हो गया। तब भीम सिंह ने श्रीनाथजी को नाथद्वारा हवेली में सुरक्षित रखा, जहाँ वे करीब दस महीने तक रहे।
जब घसियारिया में मंदिर तैयार हुआ, तो 1802 ईस्वी में श्रीनाथजी को वहाँ विराजमान कराया गया। अगले पांच साल (1802-1807) तक भगवान वहीं रहे। इस दौरान जसवंतराव ने लूटपाट की और बारह लाख रुपए की मांग रखी। जब हालात सामान्य हुए, तो श्रीनाथजी को घसियारिया से नाथद्वारा के उसी मूल मंदिर में वापस ले जाया गया।
आज भी जारी है वही परंपरा
डॉ. चंद्रशेखर बताते हैं कि आज भी घसियारिया मंदिर में नाथद्वारा जैसी ही परंपरा निभाई जाती है। यहाँ ‘चित्र सेवा’ होती है, जिसमें ठाकुरजी का श्रृंगार कर भक्तों को दर्शन कराए जाते हैं। श्रीनाथजी दर्शन के लिए पहुंचने वाले कई भक्त पहले इस मंदिर में दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। इस मंदिर की खास पहचान यह है कि यहाँ श्रीनाथजी के पैर आगे की ओर खुले हुए हैं।
बाल स्वरूप हैं श्रीनाथजी
वर्तमान नाथद्वारा मंदिर में श्रीनाथजी को भगवान श्रीकृष्ण का बाल स्वरूप मानकर पूजा होती है। यह मंदिर एक हवेलीनुमा है और 1672 में श्रीनाथजी की प्रतिमा ब्रज से यहाँ आई थी। यह वैष्णव संप्रदाय की प्रधान पीठ है। यहाँ की पूजा में राग, भोग और श्रृंगार पर आधारित सेवा होती है, जो मौसम और दिन के अनुसार बदलती रहती है।
दुनियाभर में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ भगवान को 21 तोपों की सलामी दी जाती है।
- भक्तों का ऐसा भी मानना है कि यहाँ चावल के दानों में भी श्रीनाथजी के दर्शन होते हैं।
- लोग चावल के ये दाने घर ले जाते हैं और तिजोरी में रखते हैं, जिससे घर में समृद्धि आती है।
- मंदिर परिसर में मोती महल चौक, महाप्रभु जी की बैठक, रतन चौक, गोवर्धन पूजा चौक और कई अन्य महत्वपूर्ण स्थान हैं।
श्रीनाथजी की यह ऐतिहासिक यात्रा हमें बताती है कि कैसे भक्तों की आस्था और समर्पण ने हर मुश्किल घड़ी में भगवान की रक्षा की। यह कहानी सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि श्रद्धा की एक जीवंत मिसाल है।
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